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यज्ञोपैथी : यज्ञ द्वारा मधुमेह के रोगियों की चिकित्सा

Updated: Jul 20, 2021

गायत्री चेतना केंद्र, नोएडा में 11 डायबिटिक रोगियों पर अप्रैल 2019 में एक माह का उपचार सत्र कार्यान्वित किया गया | इसमें निर्धारित प्रारूप के अनुसार 1 घंटे के उपचार की प्रक्रिया अपनाई गई जिसमें औषधीय हवनसामग्री से 20 मिनट का यज्ञ, 10 मिनट का मानसिक जप, 20 मिनट प्राणायाम तथा 10 मिनट बीमारी से संबंधित आसन सम्मिलित थे। इसके अतिरिक्त रोगियों को निष्कासन तप के विषय में भी बताया गया और उनसे उनकी गुप्त समस्याओं को लिखवा कर लिया गया तथा कुछ आहार-विहार के संयम से अवगत करवाया गया। सत्र के प्रारंभ में तथा अंत में सभी रोगियों के रक्त जांच की रिपोर्ट तथा उनकी अन्य समस्याओं का आकलन किया गया| इसके नतीजे अत्यंत उत्साहवर्धक थे जो कि निम्न तालिका में दिखाए गए हैं:




इन नतीजों को हम निम्न प्रकार से समझ सकते हैं:

  • श्रीमती गीता मिश्रा, उम्र 56 वर्ष, के घुटनों के दर्द व वजन घटने में आराम मिला|

  • श्री अनिल मिश्रा जी, उम्र 68 वर्ष, के फास्टिंग ब्लड शुगर 200 से घट कर 88 हो गया तथा पी.पी. ब्लड शुगर 400-450 से अब 261 हो गया तथा अन्य सभी समस्याओं में अनापेक्षित आराम मिला|

  • श्रीमती शकुन्तला गुप्ता, उम्र 53 वर्ष, का पुराना फास्टिंग ब्लड शुगर 160 से कम हो कर 112.3 तथा पी.पी. ब्लड शुगर 160 से अब हो कर 102.3 हो गया | इन्हें अपनी शरीरिक ऊर्जा में बढ़ोत्तरी महसूस हुई|

  • श्रीमती रेणु बाला सिंह, उम्र 38 वर्ष, ब्लड शुगर 324 से कम हो कर 213.7 तथा पी.पी. ब्लड शुगर 324 से अब हो कर 275 हो गया तथा वजन में भी कमी आयी|

  • श्रीमती नीलम, उम्र 70 वर्ष, फास्टिंग ब्लड शुगर 154 से कम हो कर 106 तथा पी.पी. ब्लड शुगर 154 से अब हो कर 125 हो गया तथा सकारात्मक चिंतन बढ़ा|

  • श्री केदारनाथ जी का फास्टिंग ब्लड शुगर 135 से कम हो कर 117 तथा पी.पी. ब्लड शुगर 135 से घट कर अब 127 हो गया |

यज्ञोपैथी एक सर्वांगपूर्ण उपचार पद्धति के रूप में विकसित हो रही है| सामान्यतः यह माना जाता है कि यज्ञ में बैठने मात्र से ही व्यक्ति निरोगी हो जाता है और यही यज्ञोपैथी है, परंतु ऐसा नहीं है | यह सर्वांगपूर्ण जीवन पद्धति से जन्मी एक उपचार प्रक्रिया है, जिसे यदि हम अपने जीवन का अंग बना लें तो इसके अभूतपूर्व भौतिक एवं आध्यात्मिक लाभ मिल सकते हैं| इसमें आहार संयम, तप तितीक्षा, ध्यान-यज्ञ, मंत्रोचार की विधि व्यवस्थाएं, वनौषधि यजन की विशिष्टता तथा यज्ञ करने कराने वाले का व्यक्तित्व, सभी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| अत: इसका सम्पूर्ण लाभ लेने के लिए उपरोक्त सभी क्षेत्रों पर ध्यान देना आवश्यक है|







 
 
 

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